डेयरी, बकरी और मुर्गी पालन से मिल रहा रोजगार, महिलाओं को मिल रहा सशक्तिकरण
पटना, 12 सितंबर।बिहार में पशुपालन अब केवल जीवन-निर्वाह का साधन नहीं रहा, बल्कि यह स्वरोजगार और आय का बड़ा जरिया बन गया है। राज्य के ग्रामीण इलाकों में पशुपालन से महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं और युवा पीढ़ी रोजगार पा रही है।
5 वर्षों में 250 करोड़ का अनुदान
राज्य सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की विभिन्न योजनाओं के तहत पिछले पांच वर्षों में करीब 250 करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया है। इससे हजारों किसान और बेरोजगार युवक-युवतियां लाभान्वित हुए हैं।
डेयरी पर 75% तक सब्सिडी
- गाय और भैंस पालन को बढ़ावा देने के लिए समग्र गव्य विकास योजना और देशी गौ पालन योजना चलाई जा रही हैं।
- इन योजनाओं के तहत डेयरी स्थापित करने पर लागत का 50 से 75 फीसदी तक अनुदान दिया जाता है।
- केवल इन योजनाओं के तहत पिछले 5 वर्षों में 178.03 करोड़ रुपये बतौर अनुदान दिए गए।
बकरी और मुर्गी पालन पर भी फोकस
- समेकित बकरी एवं भेड़ विकास योजना : 50–60% तक अनुदान, 5 वर्षों में 19.15 करोड़ रुपये वितरित।
- समेकित मुर्गी विकास योजना : 30–40% तक सब्सिडी, 5 वर्षों में 41.67 करोड़ रुपये का अनुदान।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा
इन योजनाओं के परिणामस्वरूप –
- राज्य में दुग्ध उत्पादन में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है।
- ग्रामीण स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
- महिलाएं स्वरोजगार से आत्मनिर्भर बन रही हैं।
बड़ा बदलाव
विशेषज्ञों का मानना है कि पशुपालन ने बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी है। राज्य सरकार की योजनाओं से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है और गांवों में समृद्धि का नया मॉडल विकसित हो रहा है।


