बिहार की सियासत में इन दिनों सबसे बड़ी चर्चा राघोपुर सीट को लेकर है। जन सुराज पार्टी के संस्थापक और चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (PK) ने इशारा किया है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में करगहर या राघोपुर से ताल ठोक सकते हैं। अगर PK राघोपुर से मैदान में उतरते हैं, तो यह सीट महज चुनावी नहीं, बल्कि बड़े सियासी युद्ध का केंद्र बन जाएगी।
तेजस्वी यादव का गढ़ बनाम PK की चुनौती
राघोपुर सीट पर फिलहाल तेजस्वी यादव का दबदबा है। वे लगातार दो बार यहां से विधायक बने हैं और इस बार भी उसी सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, जिससे यह सीट लंबे समय से आरजेडी का मजबूत गढ़ मानी जाती है।
लेकिन PK की संभावित दावेदारी ने समीकरण बदल दिए हैं। वर्ष 2010 में जेडीयू के सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को हराकर यहां से आरजेडी को करारा झटका दिया था। यानी राघोपुर में मुकाबला हमेशा आसान नहीं रहा है।
जातिगत समीकरण और जीत-हार का इतिहास
राघोपुर में यादव-मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं, जो आरजेडी को मजबूती देते हैं। हालांकि, यहां राजपूत, ईबीसी और अन्य वर्गों की भी निर्णायक भूमिका रहती है।
- 2005: लालू यादव ने जेडीयू उम्मीदवार को 22 हजार वोट से हराया।
- 2010: जेडीयू के सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को 12 हजार वोट से हराया।
- 2015: तेजस्वी यादव ने 22,733 वोट से जीत हासिल की।
- 2020: तेजस्वी ने 38,174 वोट से जीत दर्ज की।
इतिहास बताता है कि यादव-मुस्लिम वोट बैंक मजबूत जरूर है, लेकिन गैर-यादव मतों का ध्रुवीकरण किसी भी समय बाज़ी पलट सकता है।
PK का मास्टरस्ट्रोक
प्रशांत किशोर अपने विकास-आधारित एजेंडे और युवाओं पर फोकस की रणनीति के लिए जाने जाते हैं। वे जातीय राजनीति की जकड़न से हटकर रोजगार, शिक्षा और प्रशासनिक सुधार जैसे मुद्दों को उठाते रहे हैं। अगर वे राघोपुर से लड़ते हैं तो यह मुकाबला केवल जातिगत समीकरणों का नहीं, बल्कि विकास बनाम परंपरागत राजनीति का भी होगा।
बिहार की राजनीति पर असर
PK की एंट्री से महागठबंधन और एनडीए दोनों की रणनीति प्रभावित हो सकती है। तेजस्वी यादव जहां खुद को अगला मुख्यमंत्री साबित करने की लड़ाई लड़ेंगे, वहीं PK तीसरे विकल्प के तौर पर उभरने की कोशिश करेंगे। जानकार मानते हैं कि यह जंग सिर्फ राघोपुर तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि बिहार की राजनीति का नया नैरेटिव तय करेगी।
तेजस्वी के लिए बड़ी परीक्षा
तेजस्वी यादव के सामने यह लड़ाई न सिर्फ अपनी सीट बचाने की होगी, बल्कि अपनी सियासी पकड़ और नेतृत्व क्षमता साबित करने की भी होगी। अगर PK मैदान में उतरते हैं तो यह मुकाबला बेहद दिलचस्प और अप्रत्याशित हो सकता है।


