बिहार : सूबे के सरकारी स्कूलों में बच्चों को अब बोरा-दरी पर नहीं बैठेंगे। इसके लिए अभियान चलाकर 890 करोड़ रुपये के बेंच-डेस्क की खरीद की गयी है। पिछले चार माह में करीब 18 लाख बेंच-डेस्क खरीदे गये हैं।
शिक्षा विभाग ने जिलों से सूचना मांगी है कि आकलन कर बतायें कि और कितनी संख्या में बेंच-डेस्क की जरूरत है। विभाग का लक्ष्य है कि कोई भी बच्चा बेंच-डेस्क के अभाव में जमीन पर बैठकर पढ़ाई नहीं करे।
विभाग का जिलों को निर्देश था कि बेंच-डेस्क की खरीद तेजी से की जाये। एक बेंच-डेस्क की कीमत पांच हजार रुपये तय की गयी है। बेंच-डेस्क की गुणवत्ता को लेकर भी विभाग ने मानक तय कर रखे हैं, जिसके अनुरूप ही खरीद की जानी है। राज्य में बड़ी संख्या में बेंच-डेस्क की जरूरत थी। विभाग का निर्णय था कि शुरुआती चरण में किसी एक स्कूल में अधिकतम 100 बेंच-डेस्क की आपूर्ति की जाएगी। ताकि, अधिक-से-अधिक स्कूलों में बेंच-डेस्क पहुंच जाये। यह व्यवस्था प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक तक के स्कूलों के लिए की गयी है।
पदाधिकारी बताते हैं कि जुलाई, 2023 से स्कूलों में नियमित रूप से निरीक्षण कार्य शुरू हुए तो पाया गया कि बड़ी संख्या में बच्चों को कक्षा में नीचे बैठकर पढ़ना पड़ता है। कमरों के अभाव में बच्चे बरामदे में बैठने को मजबूर हैं। इसके बाद ही अतिरिक्त कमरों के निर्माण के साथ-साथ बेंच-डेस्क की खरीद का निर्णय हुआ। अब-तक 900 करोड़ राशि जिलों के भेजी जा चुकी है। विभाग का जिलों को निर्देश था कि जिन स्कूलों में कमरों की कमी है और अतिरिक्त बेंच-डेस्क नहीं रखे जा सकते हैं। ऐसे स्कूलों में कमरों का निर्माण प्रक्रिया शुरू करने के बाद बेंच-डेस्क की खरीद की जा सकती है। ताकि, कमरे बनने के बाद वहां पर तत्काल बेंच-डेस्क रखे जा जा सके।
गुणवत्ता की जांच भी की जा रही
बेंच-डेस्क की खरीद के साथ ही इसकी गुणवत्ता की जांच के भी प्रबंध किये गये हैं। पंचायतों में कार्यरत जूनियर इंजीनियरों को भी जांच की जिम्मेदारी दी गयी है। इसी क्रम में सात लाख से अधिक बेंच-डेस्क की जांच की गयी। बेंच-डेस्क के मानक के अनुरूप नहीं होने पर आपूर्ति करने वाली कई एजेंसियों पर 27 लाख से अधिक आर्थिक दंड भी लगाये गये हैं। दो कंपनियों पर प्राथमिकी भी दर्ज की गयी है। साथ ही 14 हजार बेंच-डेस्क बदले गये हैं।
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